तीन साल से लंबित बिल का भुगतान, भास्कर के खुलासे के बाद तेज हुई विभाग की कार्रवाई
पटना। बिहार की राजनीति में सोमवार को बड़ा हलचल देखने को मिला जब आरजेडी नेता और पूर्व मंत्री तेजप्रताप यादव ने अपने सरकारी आवास का 3.56 लाख रुपये का बिजली बकाया बिल जमा कर दिया। यह बकाया लगभग तीन वर्षों से लंबित था, लेकिन मीडिया रिपोर्ट के बाद मामला अचानक गंभीर हो गया और विभाग ने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी।
1. मामला कैसे सामने आया: भास्कर की जांच रिपोर्ट की भूमिका
इस पूरे विवाद की शुरुआत दैनिक भास्कर की एक जांच रिपोर्ट से हुई। रिपोर्ट में बताया गया कि तेजप्रताप यादव के सरकारी आवास का बिजली बिल लंबे समय से जमा नहीं किया गया था। रिपोर्ट में बकाया राशि, मीटर रीडिंग और उपभोग आंकड़े के आधार पर यह दर्शाया गया कि बिल की राशि वर्षों से लगातार बढ़ रही थी, लेकिन भुगतान नहीं हो रहा था।
रिपोर्ट के वायरल होते ही सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा तेजी से उठा और लोगों ने सवाल किया कि आम उपभोक्ता अगर एक-दो महीने भी बिल नहीं भरते तो कनेक्शन काट दिया जाता है, लेकिन वीआईपी घरों में इतना लंबा बकाया कैसे चलता रहा।
2. विभाग की त्वरित प्रतिक्रिया: जांच और नोटिस कार्रवाई
जैसे ही रिपोर्ट सामने आई, ऊर्जा विभाग और बिहार स्टेट पावर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड (BSPHCL) ने इस मामले को गंभीरता से लिया।
कंपनी के अधिकारियों ने:
- मीटर रीडिंग रिकॉर्ड की जांच कराई
- बिलिंग हिस्ट्री को फिर से मिलाया
- बकाया राशि की आधिकारिक पुष्टि की
इसके बाद विभाग ने तेजप्रताप यादव को औपचारिक नोटिस जारी किया जिसमें बकाया राशि तुरंत जमा करने का निर्देश था। नोटिस इस बात का स्पष्ट संकेत था कि विभाग इस बार कार्रवाई को हल्के में नहीं ले रहा है।
3. तीन वर्षों का बकाया कैसे बना 3.56 लाख रुपये
तेजप्रताप यादव के सरकारी आवास का बिजली बिल पिछले लगभग 36 महीनों से जमा नहीं हुआ था। इस अवधि में:
- महीने-दर-महीने बिजली खपत का बिल जोड़ता गया
- लेट फीस और अधिभार लागू हुआ
- पिछले बकाया पर सरचार्ज भी बढ़ता गया
इन सभी को मिलाकर कुल बकाया राशि 3,56,000 रुपये से अधिक तक पहुंच गई।
बिजली विभाग के अनुसार सरकारी आवास होने के बावजूद बिल व्यवस्था वही है—उपयोग के अनुसार मीटर रीडिंग और मासिक बिल जनरेट होता है। अगर भुगतान नहीं किया जाता तो बकाया जारी रहता है।
4. विपक्ष का हमला: ‘आम जनता पर सख्ती, नेताओं पर नरमी?’
मामले के सामने आने के तुरंत बाद विपक्षी दलों ने सरकार और तेजप्रताप यादव पर हमला बोलना शुरू किया। कई नेताओं ने कहा कि:
- आम उपभोक्ता दो महीने बिल न भरे तो बिजली काट दी जाती है
- नेताओं के मामले में विभाग अक्सर कार्रवाई में नरमी दिखाता है
हालाँकि विभाग ने इसका खंडन किया और कहा कि किसी भी उपभोक्ता को बकाया में राहत नहीं दी जाती, चाहे वह वीआईपी हो या नहीं।
विपक्ष ने यह भी मांग की कि सरकार स्पष्ट करे कि आखिर इतने लंबे समय तक बकाया कैसे चलता रहा और किस स्तर पर निगरानी में चूक हुई।
5. तेजप्रताप यादव का रुख: चुपचाप भुगतान
विवाद बढ़ने के बाद तेजप्रताप यादव ने इस मामले में सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं दी। हालांकि सोमवार को उन्होंने पूरा बकाया बिल जमा कर दिया।
विभाग ने भुगतान की आधिकारिक पुष्टि कर दी है।
सूत्रों के अनुसार, तेजप्रताप ने बिना किसी आपत्ति के पूरा बिल भरा, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे विवाद को बढ़ने नहीं देना चाहते थे।
6. विभागीय बयान: ‘बकाया वसूली अभियान जारी, किसी को छूट नहीं’
ऊर्जा विभाग ने इस मामले पर कहा कि:
- राज्यभर में बकाया वसूली अभियान चल रहा है
- कई वीआईपी घरों से भी बड़े बकाये की वसूली की जा रही है
- विभाग बिलिंग व्यवस्था को सख्त और पारदर्शी बनाने की दिशा में काम कर रहा है
अधिकारियों का कहना है कि तेजप्रताप यादव का बिल जमा होना इस बात का उदाहरण है कि विभाग किसी भी उपभोक्ता के साथ विशेष व्यवहार नहीं करता।
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7. सरकारी आवासों में बिजली बिल कैसे काम करता है: पृष्ठभूमि
सामान्य धारणा है कि मंत्रियों या पूर्व मंत्रियों के घरों में बिजली “सरकार की तरफ से” आती है, लेकिन यह पूरी तरह सही नहीं है।
नियमों के अनुसार:
- सरकारी आवासों के लिए बिजली विभाग मीटर के अनुसार बिल जनरेट करता है
- भुगतान या तो उपभोक्ता स्वयं करते हैं
- या विभागीय व्यवस्थाओं के तहत राशि एडजस्ट होती है
- बकाया रहने पर नोटिस की प्रक्रिया सामान्य उपभोक्ता की तरह ही होती है
तेजप्रताप का मामला यह दिखाता है कि सरकारी आवास में भी बिलिंग व्यवस्था सामान्य घरों की तरह ही चलती है।
8. इस घटना का असर: राजनीतिक और प्रशासनिक दोनों स्तरों पर
यह मामला बिहार की राजनीति में एक बार फिर जवाबदेही (accountability) के मुद्दे को उठाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि:
- यह घटना विभाग की निगरानी व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत बताती है
- राजनीतिक पदों पर बैठे लोगों को भी समय पर बिल भरने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए
- आम जनता पर इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है—कि खुद नेता भी नियमों के दायरे में हैं
9. सोशल मीडिया की भूमिका
रिपोर्ट सामने आने के बाद सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर जमकर चर्चा हुई।
लोगों ने विभाग से यह पूछा:
- इतनी बड़ी राशि कैसे एकत्र हुई
- किसने समय पर रिमाइंडर नहीं भेजे
- क्या ऐसे मामलों की नियमित ऑडिट होती है
दूसरी तरफ कुछ यूजर्स ने कहा कि अब जब तेजप्रताप ने भुगतान कर दिया है तो मामले को अधिक राजनीतिक रंग देना उचित नहीं।
10. निष्कर्ष: एक संदेश और कई सवाल
तेजप्रताप यादव द्वारा तीन साल के बकाया बिल का भुगतान तो हो गया है, लेकिन यह घटना कई सवाल छोड़ जाती है।
क्या विभाग की निगरानी पर्याप्त है?
क्या बड़े उपभोक्ताओं के लिए अलग मॉनिटरिंग की जरूरत है?
क्या नियम सभी पर समान रूप से लागू होते हैं?
यह विवाद अब थम गया है, लेकिन इससे बने सवालों पर आने वाले दिनों में बहस जरूर जारी रहेगी।
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